विचार, चिन्तन और सोचने का अन्दाज
प्रकृति का उपहार हमारा जीवन अमूल्य है, इसे जीने योग्य बनाने के लिये हमें लगातार, सही और सकारात्मक प्रयास करने होते हैं। जैसे—
हमारे जाग्रत विचार और चिन्तन, हमारे अवचेतन/सुसुप्त मन में स्थापित हो जाते हैं। कुछ समय बाद यही विचार हमारे जाग्रत विचारों को संचालित करने लगते हैं। अत: हम हमारे अवचेतन मन के गहरे तल पर जैसा सोचते हैं, हमारा सम्पूर्ण जीवन वैसा ही बन जाता है। इसलिये हमें जाग्रत अवस्था में अपने विचार, चिन्तन और सोचने के अन्दाज पर ध्यान देना होगा।
सेवासुत डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
M & WA No.: 9875066111/160717
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