वर्षों तक असत्य को सत्य मानकर अनुसरण करते रहने के बाद, यदि अचानक सत्य से मुलाकात हो जाये तो असत्य के साथ जीने का आदि हो चुका हमारा मन और विवेक दोनों, सत्य पर संदेह करने लगते हैं! हमारा अस्तित्व असत्य और सत्य के भ्रम में छटपटाने लगता है! ऐसे में मन और विवेक की चालाकियों से बाहर निकलकर या मन तथा विवेक के तर्कों से मुक्त होकर हृदय को अपनी मौन वाणी बोलने देने का अवसर देना होगा! तब सारे भ्रम, दुःख के अँधेरे और संदेह के बादल स्वत: ही छंट जायेंगे! उजाड़, सूखे और निराशा के गर्त में अवशाद ग्रस्त जीवन में भी आशा, उमंग और ताजगी का अहसास हिलोरें मारने लगेगा! जरूरत केवल इस बात की है की हम निर्लिप्त होकर अपने चालक मन तथा विवेक और कोमल हृदय की सत्य किन्तु मौन वाणी को समझने की समझ पैदा करें!-Wednesday, 22 February 2012
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वैज्ञानिक प्रार्थना
Thursday, 23 February 2012
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जरूरत केवल इस बात की है की हम निर्लिप्त होकर अपने चालक मन तथा विवेक और कोमल हृदय की सत्य किन्तु मौन वाणी को समझने की समझ पैदा करें!bahut ghn vichar pr aisee samajh sabhi nhi rakh sakte.
ReplyDeleteअच्छा ज्ञान वर्धक लेख |
ReplyDeleteआशा