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वैज्ञानिक प्रार्थना

Wednesday, 2 April 2014

स्त्री और पुरुष का रिश्ता शरीर, मन, दिल और आत्मा का मार्ग पूरा करने से पहले ही मर जाता है।

एक स्त्री और पुरुष का रिश्ता शरीर, मन, दिल और आत्मा के मिलन का होता है, मगर शरीर से आत्मा तक पहुँचने का मार्ग दुरूह है। बहुतों को तो मन और दिल में भेद ही नहीं पता! कितने जन्मते और मर जाते हैं, मगर शरीर से आगे का रास्ता तय ही नहीं कर पाते। कारण चाहे जो भी रहे हों या रहते हों, मगर सच यही है। एक विवाहित पुरुष और स्त्री के शरीर का सम्बन्ध तो काम तृप्ति और प्रजनन की जरूरत है। जिसे मन संचालित करता है, हाँ ये भी सच है कि कभी मन काम से और कभी काम मन से संचालित होते हैं। यदा-कदा दिल के रास्ते भी शरीर का मिलन होता है। स्त्री-पुरुष के रिश्ते-काम तृप्ति की भौतिक जरूरत के इर्द-गिर्द ही घूमते रहते हैं। जिनमें शरीर की जरूरत की मुख्यता या प्रधानता होती है। यह भी निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि किसी भी सामान्य स्त्री और पुरुष के रिश्ते में दोनों के मध्य कमोबेश एक दूसरे के लिए प्रकृतिदत्त विपरीत लिंग का आकर्षण अवश्य होता है। जिसे अनेक या ज्यादातर अविवाहित या विवाहेत्तर सम्बन्धों में लिप्त लोग अनाम या छद्म नामों की आड़ में छिपाने या ढकने के असफल प्रयास करते रहते हैं। किन्ही अपवादों को छोड़ दिया जाए तो ऐसे रिश्तों का अंतिम लक्ष्य और, या अंतिम परिणाम शारीरिक सम्बन्ध ही होता है। यह एक कड़वा सच है कि परिवार के नजदीकी रक्त संबंधों को छोड़कर किसी भी स्त्री और पुरुष के बीच बनने वाले गहन रिश्ते बिना संसर्ग के नीरस, खोखले, रिक्त और अधूरे होते हैं। जिनके सुफल बहुत कम देखे जा सकते हैं! बेशक ऐसे रिश्ते कुछ समय बाद टूट जाएँ या उन रिश्तों की गर्माहट कुछ समय बाद ठंडी या कम हो जाये, लेकिन शरीर के मिलन के बाद ही उन रिश्तों का दोनों के लिए कोई मतलब होता है। जो आकर्षक या युवा जोड़े अपने मधुर रिश्तों को दुनिया के सामने सिर्फ दोस्ती तक सीमित बतलाते हैं, उनमें से किन्ही अपवादों को छोड़कर सौ फीसदी झूठ बोलते हैं। जिसके लिए समाज की अनचाही बंदिशें जिम्मेदार हैं। यही कारण है कि स्त्री और पुरुष का रिश्ता शरीर, मन, दिल और आत्मा का मार्ग पूरा करने से पहले ही मर जाता है।

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