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वैज्ञानिक प्रार्थना

Tuesday, 19 January 2016

'यौन—शिक्षा' और 'फैमिली काउंसलिंग'

'यौन—शिक्षा' और 'फैमली काउंसलिंग'
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लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश' 
एक लेखिका का कहना है कि—''लड़की कोई सेक्सुअल ऑब्जेट नहीं है।'' मेरी दृष्टि में इस वाक्य का दूसरा अर्थ यह भी है कि लेखिका उक्त पंक्ति को लिखने से पहले यह मानती हैं कि वर्तमान में पुरुषों की नजर में—''लड़की सेक्सुअल ऑब्जेट है।'' अन्यथा उनको यह लिखने की क्यों जरूरत होती कि—''अंत में केवल इतना कहना चाहती हूँ कि लड़की कोई सेक्सुअल ऑब्जेट नहीं है। आप लड़कियों की इज्जत करना सीखो।''
क्या ऐसा लिखने मात्र से और कुछ लोगों द्वारा इस बारे में सहमति व्यक्त करने मात्र से लड़की सेक्सुअल आॅब्जेक्ट नहीं रहेगी? यदि ऐसा हुआ होता तो स्त्री और पुरुष के सम्बन्धों और हालातों में कभी का आमूलचूल बदलाव आ चुका होता। यह विषय इतना सरल और आसान नहीं है, जितना कि आम सुधारवादी और अनेक महिलाएं समझते हैं।
इस प्रकार की समस्याओं के समाधान के लिये सबसे पहले हमें मानवता के इतिहास में उन कारणों को खंगालना होगा, जिनके कारण ''लड़की सेक्सुअल ऑब्जेट बन चुकी या बना दी गयी है।'' अनेक शोध और अध्ययनों ये प्रमाणित हुआ है कि बहुत बड़ी संख्या में लड़की/स्त्री खुद ही अपने आप को 'सेक्सुअल ऑब्जेट' मानती रही हैं। आज भी मानती हैं। स्त्री अपने आपको एक मानवी के बजाय, अपनी योनिक पहचान के रूप में, पहचाने जाने की अधिक अपेक्षा करती हैं।

ऐसे में सबसे पहले बड़ा और महत्वपूर्ण विचारणीय सवाल तो यही है कि स्त्री और पुरुष की ऐसी मनोस्थिति निर्मित ही क्यों हुई? हमें पहले इस सवाल का समाधान तलाशना होगा। जब तक हम इस विषय से जुड़े मूलभूत कारणों को नहीं तलाशेंगे और तब तक हम समस्या का सच्चा और स्थायी समाधान प्रस्तुत नहीं कर सकते।
केवल उथली बातों से कुछ भी नहीं हो सकता। हम पुरुष को सजा देकर कारावास में डाल सकते हैं। समग्र समाज के रूप में हम पुरुष की निन्दा और भर्त्सना कर सकते हैं। पुरुष की मानसिकता की निन्दा में आक्रामक लेख और कविताएं लिख सकते हैं। पुरुषों के विरुद्ध जनान्दोलन कर सकते हैं। नये साहित्य की रचना कर सकते हैं, लेकिन ऐसा करने से ही यदि इस समस्या का समाधान हुआ होता तो कभी का हो गया होता।
कड़वी सच्चाई यह है कि इतने साधारण तरीकों से हम इस समस्या का समाधान नहीं कर सकते। वास्तव में यह समस्या बहुत बड़ी और गहरी है। इसके कारण अनेकों स्त्रियों का जीवन, जीने योग्य नहीं रह गया है।
विकृत कही और समझी जाने वाली यौनिक मानसिकता का मूल कारण स्त्री और पुरुष के समाजीकरण में समाहित है। समस्या के कारण हजारों सालों से स्त्री और पुरुष के लिये निर्मित मनोविज्ञान में समाहित है। समस्या स्त्री—पुरुष के गहरे अवचेतन में स्थापित है। समस्या स्त्री और पुरुष के लिये अच्छी या बुरी बना दी गयी दैनिक व्यवहारगत अवधारणाओं में समाहित है। समस्या का बहुत बड़ा हिस्सा सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक (कु) संस्कारों में भी समाहित है।
अत: इस विषय पर लगातार गवेषणात्मक अध्ययन, विवेचन और निष्कर्ष निकालकर, समग्र समाज को योजनाबद्ध तरीके से बदलाव लाने की जरूरत है, लेकिन ऐसा करने के लिये अग्रसर होना तो दूर, भारतीय समाज इस विषय में सोचने और बात करने तक को तैयार नहीं है!

इसके उलट अनेक विकसित देशों और खुले समाजों में 'फैमली कांउसलिंग' के जरिये इस क्षेत्र में बड़ी सफलता अर्जित की जा चुकी हैं। यूरोप और अमेरिका में जगह—जगह 'फैमली कांउसलिंग' क्लिीनिक संचालित होते हैं। वहां 'फैमली काउंसलिंग' महत्वूपर्ण व्यवसाय और लोगों की जरूरत बन चुका है। भारतीय संदर्भ में बात की जाये तो 'यौन—शिक्षा' और 'फैमली काउंसलिंग' महत्वपूर्ण कदम सिद्ध हो सकता है। दु:खद पहलु यह है कि इस प्रकार के सुधारों का वही लोग और उनकी संविधानेत्तर सत्ता सम्पन्न 'सांस्कृतिक पुलिस' विरोध करती हैं, जिनके द्वारा निर्मित सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक कुसंस्कारों में समस्या के मौलिक कारण समाहित है।-लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'—फैमिली काउंसलर, 9875066111, baasoffice@gmail.com

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