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वैज्ञानिक प्रार्थना

Sunday, 25 December 2011

स्वजनों का महत्व!

प्रसिद्ध दार्शनिक अरस्तू ने कहा है कि-

‘‘मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और
जो व्यक्ति समाज से अलग रहता है,
वह या तो पशु है या देवता।’’

अरस्तू के इस कथन में मनुष्य के सम्बन्ध में दो बातें अन्तर्निहित हैं-
1-पशु कोई बनना या कहलवाना नहीं चाहता और 
2-पूरी तरह से मनुष्य नहीं बन सकने वाले मानव के लिये देवता बनना आसान नहीं।

ऐसे में हर एक मनुष्य के लिये समाज का हिस्सा बने रहना जहॉं एक ओर सामाजिक जरूरत है, वहीं दूसरी ओर व्यक्ति की मानवीय जरूरतों पर दृष्टि डाली जाये तो भी हर एक मनुष्य को दूसरे मनुष्य से अन्तरंग सम्बन्ध स्थापित करना अत्यन्त जरूरी है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति दूसरों के बिना न तो खुशी या गुस्से को प्रकट कर सकता है और न हीं दु:खी होने पर स्वयं को अपने आपके गले लगा सकता है।

खुशी  और दु:ख में किसी ऐसे व्यक्ति की जरूरत होती है, जो आपको दु:ख से उबरने में सम्बल दे सके। साथ ही किसी के कंधे की जरूरत होती है, जिस पर सिर टिकाकर आप रो सकें। ये कुछ ऐसी बातें हैं, जो एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति की आत्मीय जरूरत को कदम-कदम पर प्रमाणित करती हैं। इसके उपरान्त भी हम अपने स्वजनों की महत्ता को लगातार नकारते रहते हैं या उनकी उपेक्षा करते रहते हैं, लेकिन जब वक्त खराब आता है तो हर व्यक्ति को इन रिश्तों का महत्व अपने आप ही समझ में आ जाता है।

ऐसे में सवाल उठता है कि स्वजनों से आत्मीय सम्बन्ध बनाये रखने या आत्मीय सम्बन्धों में सजीवता बनाये रखने के लिये बुरे वक्त का इन्जतार क्यों किया जाये?

यदि हम अपने आज को ठीक से समझकर आज ही सही निर्णय लेंगे तो जहॉं एक ओर हमारा आने वाला कल सार्थक होगा, वहीं दूसरी ओर हमें अपने गुजरे कल को सम्पूर्णता से नहीं जी पाने का मलाल भी नहीं रहेगा। परन्तु जीवन को सम्पूर्णता से जीने के लिये जरूरी होता है कि सभी स्वजन आपस में एक दूसरे का महत्व हृदय से समझें। जो आज के समय में सबसे मुश्किल है।  

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