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वैज्ञानिक प्रार्थना

Wednesday, 25 December 2013

नियति को स्वीकार कर लेना क्या पौरुषहीनता है?

मनुष्य भरसक प्रयास करता है और अपने आचरण में ईमानदारी भी बरतता है, लेकिन फिर भी यदि हालात नियंत्रण से बाहर हो जाएँ या बाहरी कारणों से लड़ना मुश्किल या असम्भव हो जाये तो ऐसे में-"यथास्थिति को स्वीकार कर लेना या हालातों से लड़ना"-सही मार्ग कौनसा है? समझ में नहीं आता तो इंसान बुरी तरह से परेशान हो जाता है और तनाव तथा मानसिक दबावों से ग्रसित हो जाता है। ऐसे में अपने हालातों को नियति का निर्णय मानकर स्वीकार कर लेना क्या पौरुषहीनता है?

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